दलित किसान का बेटा
एक दलित किसान का बेटा
गाव से निकल कर बड़े शहर को पढाई करने गया हुआ था। एक दिन उस दलित किसान
के बेटा को नौकरी प्राप्त करने के लिए एक फॉर्म भरना था. जिसमें 5000 रूपये की
जरुत थी। उस विद्यार्थी ने अपने पिता को
फ़ोन किया " पिताजी मुझे 5000 रूपये की जरुत है फॉर्म भरना है और एक हफ्ता का
ही समय है। आप पैसा भेज दीजिए इस बार मेरी नौकरी पक्की है। इसी के लिए मैं पिछले 6
महीने से तैयारी कर रहा था। "
दलित किसान फ़ोन पर कहता
है " बेटा देखा ना तोहरी माई तोहरी ख़ातिर, तोहरी भविष्य के लेले लखराव - अस्टजाम के जग मान लेले बिया
और पंडित जी कहलन ह की इहे सप्ताह में दिन निमन बाटे जग कर लेवेला। ओहि में बहुते ले पूजा के सामान के पुर्जा बनवले
बारन पंडित जी।
लागत बा बहुते खर्चा हो जाई। अच्छा ठीक बा जग ख़त्म होवे दा फेन कमा के तोहार नौकरी के फार्म ला पैसा भेज देहम। अभी ला घरे आ जा जग में बहुते
काम बा। “
बेचारा दलित किसान का
बेटा अपना मन मार कर फ़ोन रख देता है और घर जाने की तैयारी में लग जाता है।
पंडित जी फ़ोन पे अपने
बेटे को कहते है " ठीक है ठीक मैं समझ गया, तुम मुझे इसी हफ्ते का समय दो मैं पैसा भेज दूँगा। एक दलित किसान का जग करवाना है। उस में पैसा और सामान सब मिलेगा। उससे मैं व्यवस्था करके पैसा भेज दूँगा। पंडित -
ब्राह्मण का बेटा खुश होकर, प्रणाम करके फ़ोन रख दिया।
दलित किसान के घर
पंडित जी ने 2 दिनों तक जग करवाया। खूब मंत्र उपचार कर-कर के हर किर्या पर पैसे
रखवाए। पूरा गाँव में भोज हुआ। लाख रुपये खर्च किया। लोग बहुत प्रशंसा हुए की
" बेटा के लेले फलनवा ने बहुते बरका जग करवईलख ह,
हमओ अपना बेटा-परिवार ला करवायेंब।" सब खुश।
पंडित ब्राह्मण ने जग
ख़त्म करके मिला हुआ सारा सामान और पैसा लेकर बाज़ार निकल गया। जहां से दलित किसान
ने पूजा का सामान ख़रीदा था पंडित को दान
देने के लिए. उसी दुकान में जाकर पंडित ने सारा सामान को आधा दाम में बेच कर पैसा
ले लिया और 5000 रुपया पूरा कर अपने बेटा को भेजवा दिया शहर को।
और आज वह दलित किसान
खुद,
उसकी पत्नी और विद्यार्थी बेटा मजदूरी कर रहा खेत में ताकि
जग में लिया हुआ कर्ज चूका सके कर्जदार का और इधर पंडित ब्राह्मण के बेटा को नौकरी
मिल गयी क्योंकि नौकरी पाने का कॉम्पिटिटर ही बहुत न के बराबर था।
कुणाल भूषण